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Friday, March 8, 2024

पुनर्चक्रित प्लास्टिक की जहरीली सच्चाई का खुलासा

 


प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक संकट बन गया है, हमारे पर्यावरण में प्लास्टिक की सार्वभौमिक उपस्थिति से पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं।

लंबे समय से इस संकट को कम करने के समाधान के रूप में पुनर्चक्रण की सराहना की जाती रही है, लेकिन हाल के अध्ययनों ने पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक के एक काले पक्ष - जहरीले रसायनों की उपस्थिति - पर प्रकाश डाला है।

पुनर्चक्रित प्लास्टिक, जिसे अक्सर एक टिकाऊ विकल्प माना जाता है, में हानिकारक रसायन हो सकते हैं जो पुनर्चक्रण प्रक्रिया के दौरान बने रहते हैं। ये रसायन पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए जोखिम पैदा करते हैं, जो कड़े नियमों और टिकाऊ अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं।

अध्ययनों से पुनर्चक्रित प्लास्टिक उत्पादों में जहरीले रसायनों की मौजूदगी का पता चला है, जो सुरक्षित विकल्पों को अपनाने के महत्व पर जोर देता है। प्लास्टिक रीसाइक्लिंग से उत्पन्न चुनौतियाँ, जैसे डाउनसाइक्लिंग और हानिकारक पदार्थों का निक्षालन, इन मुद्दों के समाधान के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग करती हैं।

अनौपचारिक पुनर्चक्रण प्रथाएं स्थिति को और जटिल बनाती हैं, जिससे पुनर्चक्रणकर्ताओं और उपभोक्ताओं दोनों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा मानदंडों और विनियमों को लागू करने की आवश्यकता पर बल मिलता है। पुनर्चक्रित प्लास्टिक की सुरक्षित हैंडलिंग सुनिश्चित करने के लिए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन रणनीतियों में अनौपचारिक क्षेत्रों का एकीकरण महत्वपूर्ण है।

जैसे-जैसे हम "द प्लास्टिसिन" के युग में प्रवेश कर रहे हैं, जहां प्लास्टिक हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है, पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक की जहरीली सच्चाई का सामना करना जरूरी है। जागरूकता बढ़ाकर, टिकाऊ प्रथाओं की वकालत करके और प्रभावी नियमों को लागू करके, हम अपने ग्रह और खुद के लिए एक स्वच्छ, सुरक्षित भविष्य की दिशा में काम कर सकते हैं।

आइए पुनर्चक्रित प्लास्टिक की जहरीली सच्चाई को उजागर करने के लिए हाथ मिलाएं और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए अधिक टिकाऊ और पर्यावरण के प्रति जागरूक दृष्टिकोण का मार्ग प्रशस्त करें।

हम सभी मिलकर कुछ अलग कर सकते हैं।

Dr. Prashant Rajankar, 

ESH Foundation, Nagpur

Friday, July 26, 2019

सब्जी के साथ आपको क्या फ्री मिलता है? "धनिया"' No....No....No...

सब्जी के साथ आपको क्या फ्री मिलता है?

शायद आपका जवाब  होगा  "धनिया"'
थोड़ी देर के लिए मान भी लेते है, लेकिन सच्चाई कुछ है, क्यूंकि सी. इस. आई. आर - नीरी  (CSIR - NEERI) की ताज़ा रिसर्च की  माने तो दिल्ली में बिक रही कई सब्जियों में कई हानिकारक तत्व पाए गए है, जैसे की सीसा (lead), मरकरी (Hg) निकल, और कैडमियम जो की हेवी मेटल्स है और lead, mercury तो WHO की हानिकारक तत्वों  की लिस्ट में भी शामिल है। 

हलाकि टॉक्सिक्स लिंक* की स्टडी जो २०१४  गयी थी उसमे यमुना के मिटटी  में हेवी मेटल्स पाए गए थे, उसके बाद २०१५ में NGT (नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ) ने यमुना फ्लडप्लेन में सब्जियों एवं जानवरो के खाने योग्य उपज करने के लिए बैन लगाया था उसके बावजूद भी वहां अगर सब्जिया उगाई जा रही है तो हमे सावधान होना चाहिए। 

NEERI के स्टडी के अनुसार धनिया, और अन्य सब्जियों में सीसा का लेवल FSSAI के स्टैण्डर्ड से ज्यादा मिला है हलाकि जब तक स्टडी हुआ होगा तबतक कई लोगो  में यह हानिकारक तत्व पहुंच गए होंगे। 

दिल्ली वालो के लिए तथा अन्य जगहों में जहा अगर जहरीले पानी से सब्जियों की खेती होती है तो उन सभी लोगो यह बहोत गंभीर बात है 

इससे कैसे बच सकते है, इसका समाधान ढूंढ़ना आवश्यक है। 

read this -  (How to reduce chemical exposure in fruits and vegetables?) 
https://prashantrajankar.blogspot.com/2019/04/how-to-reduce-chemical-exposure-in.html

सामान्यतः  हमारा शरीर तरह के तत्वों पे रिएक्ट करता है,  बार उन्हें शरीर से बाहर कर देता है लेकिन अगर लगातार यह तत्व शरीर में आते है तो इसके विपरीत परिणाम दिखना शुरू हो जाता है। 
यह  पहले तो पेट के माध्यम से खून में जाता है, उसके बाद सॉफ्ट tissues (ब्रेन, किडनी, लंग्स, इ.) और lead जैसे तत्व bones में भी जाते सकते है।  

हेवी मेटल्स के गंभीर परिणाम 
- एनर्जी लेवल को करना 
- ब्रेन के फंक्शन को हानी पहुंचना 
- लंग्स के फंक्शन को हानी पहुंचना 
- किडनी के फंक्शन को हानी पहुंचना 
- लिवर के फंक्शन को हानी पहुंचना
- ज्यादा मात्रा में lead लेवल हो तो कोमा  सकते है 
- कैंसर जैसी घातक बीमारी भी  है। 

यह परिणाम दिखने से पहले कुछ लक्षण जैसे की ( पेट दर्द, सर दर्द, उलटी आना, बच्चो में भूख न लग्न, पढाई में ध्यान न लग्न, चिड़चिड़ापन)दिखाई पड़ते है उन्हें वह अगर ध्यान में आये तो उससे बचा जा सकता है. 

Sources 

Tuesday, March 28, 2017

Ayurvedic Medicine but acting as a poison !!

http://timesofindia.indiatimes.com/city/ahmedabad/poison-in-ayurvedic-drugs/articleshow/57862811.cms

Dear All,
I came across the news came in the Times of India News Paper regarding the negative health impact of Ayurvedic medicine. Normally we consider Ayurvedic medicine as a safe but if it causes the harmful impacts then it is dangerous. 

I know, somewhere it was written that there might be some mercury, lead, etc. in some of these Ayuredic medicine, which is require for some specific treatment, and that is also within the prescribe limit. but this is very surprising that the people who used the medicine for diabetic treatment caused them negative impact. 

Really,  "There is a strong need for stringent quality control measures to be in place for ayurvedic medicines." as  Dr Aruna Dewan suggested.


-Prashant

Wednesday, November 23, 2016

Cold Drink में घुल सकते है प्लास्टिक की बोतल में मिले रसायन- हानिकारक प्रभाव

दोस्तों,
आपको याद होगा की कुछ  समय पहले मैंने अपने पोस्ट में प्लास्टिक के बारे में लिखा था, की प्लास्टिक हमारे लिये हर हाल में हानिकारक है। और एक और पोस्ट में कोल्ड ड्रिंक के बारे में लिखा था Be aware with long term affects of cold drinks !!

अभी हाल ही में एक समाचार पत्र में एक अभ्यास का जिक्र कर ये बताया है की, आम तौर पर जो हम जो कोल्ड ड्रिंक पीते है, उसकी जो बोतले है उसमे  lead, chromium and cadmium जैसे हानिकारक धातु पाए जाते है।
विश्व स्वास्थ संघटन के अनुसार १० घातक रसायन है, यह उनमे से ही है जो हमारे स्वास्थ के लिए हानिकारक है। और छोटे बच्चे इससे जल्दी प्रभावित हो सकते है।  
स्वास्थ मंत्रालय के ड्रग टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड ने Sprite, Mountain Dew, 7UP, Pepsi and Coca-Cola की जाँच की जिसमे पता चला की PET बोतल से जहरीले रसायन निकल रहे है। और यह बात  Faggan Singh Kulaste ji ने राज्य सभा में बताई है।  

जाँच में यह पता चला है की normal room temperature पे 7UP में सीसा (lead) की मात्रा  ०.००४ मिग्रा ली और Sprite में ०.००७ मिग्रा ली पायी गयी है।  जब इन दोनों कोल्ड ड्रिंक को ४० डिग्री से. पे १० लिए रखा गया तब सीसा की मात्रा बढ़कर 7UP में ०.००६ मिग्रा ली और Sprite में ०.००९ मिग्रा ली पायी गयी, इसका मतलब गर्मी के कारण PET बोतल में मिला हुआ सीसा ड्रिंक में आया है। जो की पीनेवाले के शरीर में पहुंच सकता है।  
इन धातुओ के प्रभाव काफी खतरनाक है जिसमे निम्नलिखित समस्याए पैदा होने की संभावनाएं होती है। 

  • बच्चो में IQ लेवल का काम होना 
  • पढ़ाई में ध्यान न लगना 
  • पेट दर्द की शिकायते 
  • किडनी की समस्याए 
  • सर दर्द 

इन सभी के साथ अगर बहोत ज्यादा मात्रा में सीस जैसे हेवी मेटल्स शरीर में पहुचते है तो मरीज कोमा में भी जा सकता है।  
अगर इन सबसे बचना है तो आज ही हमे कोल्ड ड्रिंक्स का इस्तेमाल काम या बंद ही कर देना चाहिए, और घरेलु ड्रिंक जैसे निम्बू पानी का इस्तेमाल करना चाहिए जो स्वास्थ को अच्छा रखेगी और पैसे की भी बचत होगी। 

धन्यवाद् 
आपका दोस्त 
डॉ. प्रशांत राजनकर 
९६५०७४५९००    

source - http://timesofindia.indiatimes.com/india/Study-finds-traces-of-toxic-metals-in-soft-drink-bottles/articleshow/55572769.cms?TOI_browsernotification=true

Monday, November 7, 2016

घरो में लगने वाले रंगों में सीसा का इस्तमाल के लिए कानून लागू ।

घरो में लगने वाले रंगों में सीसा का इस्तमाल के लिए कानून लागू ।  

आजकल हम घरो की सजावट में रंगों का काफी इस्तेमाल करते है, पेंट कंपनिया भी लगातार नए नए किस्म के पेंट्स को बाजार में ला रही है।  २००९ के पहले पहले जो इनेमल पेंट (जो की पेंट की एक केटेगरी है) उसमे सीसा का बहोत ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल होता था।  यह सीसा काफी खतरनाक हो सकता है, इसे क्यों मिलाते है और इससे क्या हानि हो सकती है इसके बारे में, मैं पहले ही लिख चूका हु, जो निचे की लिंक में विस्तृत है। 

http://prashantrajankar.blogspot.in/2016/06/use-lead-safe-paint.html

टॉक्सिक्स लिंक (www.toxicslink.org) संस्था लगातार इस विषय पर अध्ययन कर रही थी, २००६ - २०१६ तक के लगातार प्रयासों से, आखिरकार संस्थान को ये सफलता प्राप्त हुई है, जो की संस्थान और देश के नागरिको एवं नयी पीढ़ी के हिट में है।  

पहले देश में रंगों (इनेमल पेंट) में सीसा मिलाने की मात्रा १००० मि ग्रा. / किलो ग्राम. इतनी थी और वो भी अनिवार्य नहीं थी, फिर वो मात्रा ९०  मि ग्रा. / किलो ग्राम. पे आयी, और टॉक्सिक्स लिंक संस्था  के  लगातार प्रयासों पर्यावरण, वन और जलवायु  मंत्रालय (http://envfor.nic.in/) ने २०१६ में यह कानून लागू दिया है, जिसमे ९०  मि ग्रा. / किलो ग्राम यह मात्रा अनिवार्य कर दि गयी है।  

निचे की लिंक में विस्तृत है।
http://envfor.nic.in/sites/default/files/gazete%20notification_%20lead%20in%20paints.pdf

अब देखना है की पेंट कंपनिया इसको कबसे उपयोग में लती है।  

आपका 
डॉ. प्रशांत राजनकर 
९६५०७४५९०० 

Monday, August 1, 2016

The ill-effects of toxic chemicals

Everyday, children and adults are exposed to a variety of chemicals found in common household items. Now a growing body of research suggests that many of these chemicals — which are used to make plastic more flexible and upholstery less flammable — may also pose a threat to the developing brain. While the link between early chemical exposure and neurodevelopment disorders in children remains a matter of scientific debate, a coalition of top doctors, scientists and health advocates is calling for more aggressive regulation. The goal is to protect expectant mothers, infants and children from neurotoxic chemicals by stepping up efforts to curb air pollution, remediate old lead pipes, phase out certain pesticides, ban endocrine-disrupting chemicals used in food packaging and plastics and come up with a plan for getting rid of furniture laden with fire retardants.

The scientists note that neurodevelopmental disorders are complex and have multiple genetic, social and environmental causes. But most chemicals in use today were not adequately tested for safety before being allowed on the market, said Dr Jeanne Conry, an obstetrician-gynecologist and a past president of the American College of Obstetricians and Gynecologists, which is part of the coalition. “Before we can prescribe medicine, we have to prove it’s safe,” she said. “So, how come with the chemical industry, we assume everything is safe and have to prove there’s harm?”

Three weeks ago, the coalition endorsed a first-of-its-kind consensus statement called Project Tendr, which stands for Targeting Environmental NeuroDevelopmental Risks. The statement was published in the scientific journal Environmental Health Perspectives, and related articles are being published over the next few months in endocrinology, nursing, pediatrics and epidemiology journals. “We, as a society, should be able to take protective action when scientific evidence indicates a chemical is of concern, and not wait for unequivocal proof that a chemical is causing harm to our children,” the statement says. 

The call for action comes just one week after the US president Barack Obama signed into a law a much-debated overhaul of the nation’s 40-year-old toxic chemical rules. Critics say the changes do not go far enough, and the plan for testing some 64,000 chemicals is far too slow — just 20 chemicals at a time. And the new law does not cover pesticides, one of the largest sources of childhood chemical exposures.

An official with the American Chemistry Council, which represents companies that make flame retardants, plastics and phthalates, said the new law already addresses the concerns raised by the Tendr coalition. The rules give more authority to the Environmental Protection Agency and require it to take into account vulnerable populations like pregnant women, children and older people, she said. 

The Tendr coalition includes pediatric neurologists, several minority physician associations, nurses, learning disability advocacy groups, environmental organisations and the Endocrine Society. Linda Birnbaum, director of the National Institute of Environmental Health Sciences and the National Toxicology Program, has also signed the statement. The bottom line: The group wants the chemical industry to prove a chemical is safe, rather than waiting on the medical and scientific community to prove it is harmful.
“We’re saying, shift the burden of proof,” Jeanne said. Wading into a potentially contentious issue like regulation of chemicals is unusual for the ACOG, but the group has been alarmed by rising rates of neurodevelopmental disorders and 
other health problems in children. 

Researchers say changes in diagnostic criteria and a greater awareness of developmental disorders including autism, attention deficit disorders and other learning disabilities may explain some of the increase in rates but not all of it. The chemicals singled out by the coalition include:


*Organophosphate pesticides: In one study, women who were pregnant when they lived near areas where these pesticides were in use were as many as three times more likely to have a child who developed autism or other developmental disorders. Janet Collins, a senior vice president at CropLife America, which represents pesticide manufacturers, said the studies show only an association between pesticide levels and autism disorders, not a cause-and-effect relationship.

*Flame retardants: Recent studies have found that children exposed prenatally to higher levels of flame retardants had lower IQs. Flame retardants are used in fabric and upholstery padding, computers and baby products.

*Lead: The government has banned leaded gasoline and household paint, but old homes and pipes often still contain lead that gathers in dust and leaches into water. No level of exposure is considered safe.

*Phthalates:
 Prenatal exposure has been linked in studies to problems with attention and intellectual deficits. The Consumer Product Safety Commission has banned the use of six phthalates in toys and child care products, but they are still used in all kinds of consumer products.

*Combustion-related air pollutants: Prenatal and early childhood exposure to some pollutants has been linked with preterm birth and low birth weight, as well as developmental delays.

“The goal is not to demonise every chemical on the market,” said Heather B Patisaul, a professor at North Carolina State University at Raleigh. “We need to find the group that are harmful, and figure out why, and develop new chemicals that are significantly less harmful.”

Roni Caryn Rabin, July 19, 2016, The New York Times

Source - http://www.deccanherald.com/content/558680/ill-effects-toxic-chemicals.html

Monday, June 27, 2016

सब्जीया सेहत के लिए हानिकारक भी हो सकती है !!

दोस्तो,


स्वास्थ ही धन की इस कड़ी मे आज मैं एक महत्वपूर्ण मुद्दे पे लिख लिख रहा हु। जो की हर एक की जिंदगी से जुडा है, और हर एक रोज खाने में इस्तेमाल करता है।  वो है सब्जियाँ !!


आजकल हर कोई अच्छी सेहत पाना चाहता है, स्वस्थ रहना चाहता है। 

हरी सब्जियां हमारे खाने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हम कई वर्षो से इस्तेमाल कर रहे है। इसमें से हमे कई विटामिन, मिनरल्स मिलते है। जो हमे स्वस्थ रहने में मदत करते है।  

पर सावधान हो जाइए, आज मैं कुछ चौकाने वाली बातें आपसे शेयर करना चाहता हु।  दिल्ली जैसे महानगर में जो सब्जियां आती है, उसमें कुछ समय पहले कुछ संस्थाओं ने अधयन किया है, और कई नेशनल न्यूज चैनलों ने इसे प्रदर्शित किया है, जिससे ये पता चला है की हम, आप के घरों में जो सब्जियां आती है वो गंदे पानी से धोई जाती है (मिट्टी साफ करने के लिए) | और वो पानी नदी, नालों का गंदा पानी होता है जिसमे शहर का, फैक्टरियों को गंदा, विषैला पानी मिला होता है। 


नेशनल न्यूज चैनलों तो इसे लाईव रेकॉर्ड भी किया है (इसमें मुझे भी इस विषय पे बात करने का मौका मिला था। ) 
नीचे दी गई लिंक पे आप इसे देख सकते है पड़ सकते है 

NEWS  LINK 


NEWSPAPER LINK 

हो सकता है की दिल्ली जैसे ही और भी कई अन्य शहरों का भी यही हाल होगा, तो हमे निश्चित रूप से इसे समझाना चाहिए । 
इन सब चीजों को सुनकर, पढ़कर, देखकर आश्चर्य होता है की क्या हम हमारी सेहत बना रहे है या बिगाड़ रहे है, आपको बता दु, की इस गंदे पानी में  सब हानिकारक चीजे होती है।  
- हानिकारक विषाणु 
हानिकारक जीवाणु  
- पेस्टिसाइड के कुछ तत्व 
- हानिकारक रसायन,
हानिकारक हेवी मेटल्स (सीसा, पारा, क्रोमियम, कैडमियम) 

जब ऐसे पानी में सब्जियां उगाई गई हो, धोई गई हो तो ये सारे हानिकारक तत्व  उसमे कम ज्यादा मात्रा में पहुंच जाते है जो की इन सब्जियों खाने के बाद हमारे शरीर में पहुंच जाती है और उसका बुरा प्रभाव हमारे सेहत पर करती है।  

आजकल हम ग्रीन सलाद का भी ज्यादा इस्तेमाल करते है, तो ध्यान रखना चाहिए की उस सब्जियों को सबसे पहले तो रनींग वाटर में बहुत धोना चाहिए, फिर गुनगुने पानी में थोड़ा सा नमक डाल के कुछ समय छोड़ देना चाहिए।  जिसका छीलका उतार  सकते है उसे (छीलका उतार कर उपयोग में लाना चाहिए) । 

इसमें हम हानिकारक तत्वों का प्रभाव थोड़ा तो कम कर सकते है, अगर कोई एक्सपर्ट की सलाह लेकर उपाय करता है तो और भी अच्छा है, जिसके बारे मैं भी अधिक जानने में उत्सुक हु।  

दिल्ली में सरकार ने कुछ कदम जरूर उठाये है जिसमे की यमुना के आस पास सब्जियां ना उगाई जाए, पर अगर सब्जी वाले उसमे सब्जियां धो के लाते है तो हमें सतर्क रहना चाहिए । 
आपका 

डॉ.प्रशांत राजनकर 

Saturday, June 25, 2016

सीसा रहित पेंट का इस्तमाल करे - Use Lead Safe Paint

दोस्तों नमस्कार !!

स्वास्थ ही धन की इस कड़ी मे एक और विषय के बारे में लिख रहा हु।

कुछ महीनो पहले आपने मैग्गी में लेड (सीसा /Lead ) के बारे में बहोत सुना होगा, और आशचर्य भी हुआ होगा.
उसी तरह कई और ऐसे प्रोडक्ट्स है जिसमे भी सीसा का इस्तेमाल होता है।

एक कॉमन प्रोडक्ट है, हमारे घरों में लगने वाले इनेमल पेंट. २००९ के पहले देश की कई नामी कम्पनिया इसका इस्तेमाल अपने प्रोडक्ट्स में करते थे, अब आप सोच रहे होगे की पेंट में सीसा का इस्तेमाल क्यों होता है और वो हानिकारक कैसे हो सकता है?

शीशे का इस्तेमाल 

  • पेंट को ग्लॉसी बनने के लिये
  • पेंट को बैक्टीरिया या फंगस से बचाने के लिए 
  • ज्यादा दिन तक टिकाऊ बनने के लिए 
  • अच्छा स्प्रेड होने के लिए 
कुछ वक़्त पहले अन्य विकसित देशो की तुलना में हमारे देश में पेंट में सीसा की मात्रा का काफी इस्तेमाल होता था । अब मुश्किल ये है की जब हमारा घर रेनोवेशन के लिए आता है तो उस वक़्त आजकल पेंटर पहले पुराना पेंट को निकाल के दूसरा पेंट लगाने की सलाह देते है, और वो पुराने पेंट को घिस कर निकालते है । इस वक़्त अगर पुराने पेंट  में  सीसा की मात्रा काफी होगी तो, वो घिसाई के मिल जाती है और, अगर उस वक़्त हम घर में है तो हमारे शरीर में पहुंच जाती है, ये हमारे लिए और ख़ास कर छोटे बच्चों के लिया बहुत ही हानिकारक है । 
इससे, 

  • अस्थमा 
  • बच्चों के आय क्यों लेवल पे फर्क पड़ता है (२-५ काम हो सकता है )
  • सेंट्रल नर्वस प्रणाली को प्रभावित करता है 
  • स्कूल में / पढाई में ध्यान न लगना 
  • और कई अन्य बीमारिया हो सकती है 
  • अगर आपके बच्चों में इस तरह की कुछ शिकायत है तो अपने बच्चे के खून में सीसा की जाँच कराये।
  • सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (CDC) ने 5 micrograms per deciliter इतनी मात्रा तय की है और इससे ज्यादा मात्रा पायी गयी तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए 
सुनने में थोड़ा अजीब लगता है की पेंट में मिला हुआ सीसा हमारे शारीर में इस तरह से पहुंच के हांनी पहुचाएगा लेकिन कई ऐसी रिसर्च इसका सबूत है । 

WHO ने भी इस विषय को काफी गंभीरता  से लिया है 

इसीलिए जब भी आप अपने  घरो के लिए ख़ास कर बच्चों के रूम के लिए पेंट  ले तो वह Lead Safe Paint / Lead  Free  Paint या फिर जिसमे ९० पीपीएम से कम मात्रा में सीसा का इस्तेमाल हुआ है वो वाले पेंट ले.  पेंट के डब्बो पे नो एडेड लीड  (no added lead ) देखे । 

हमारी संस्था (www.toxicslink.org )  लगातार प्रयास से देश की नामी कम्पनिया अभी सिमित मात्रा में इस्तेमाल कर रहे  है लेकिन कुछ (लगभग २०००) छोटी कम्पनियाँ भी हमारे देश में अभी ९० पीपीएम से कम मात्रा में सीसा का इस्तेमाल  कर रही है । 
Report 2013 

देश में  इस साल mandatory standard  (९० पीपीएम )  बन रहा है इससे 


और कुछ लिंक्स जो इसके बारे में और विस्तार से बताती है 
Economic Loss (I am quoted in this news)


नोट - २००० के पहले देश में पेट्रोल में भी शीसे का इस्तेमाल होता था, लेकिन पर्यावरण में फिर शीसे का बहोत गया और उससे काफी बीमारिया भी हुई थी तो उसको पेट्रोल से निकाल दिया, और अभी हमें सीसा रहीत  पेट्रोल ही मिलता है । 


आपका 
डॉ. प्रशांत राजनकर 














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