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Sunday, October 22, 2023

World-Health-Organization

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Tuesday, August 9, 2016

World Health Organisation wants Dengue Vaccine in India

As dengue cases show a steep increase, particularly in Delhi, the World Health Organisation (WHO) has recommended introducing dengue vaccine in high burden countries like India. Two months ago, the apex committee on health, headed by the health secretary, had denied approval to a multinational firm for its dengue vaccine when it sought a clinical trial waiver in India. In May, the committee had concluded that the data presented by the company was inadequate to show the efficacy and immunogenicity of the vaccine in Indians. Immunogenicity is the ability of a substance to provoke an immune response in the body. The government and the regulator are of the view that there is a need to test the vaccine on Indian patients. Sources in the central drug regulator's office said data presented by the firm showed an efficacy rate of around 43%, against the requirement of 70%. The vaccine is approved in four countries, including Mexico, Indonesia and Brazil. "However, the company wants a clinical trial waiver in India and sought approval based on data from its global studies involving 30,000 patients," a senior official in the office of Drugs Controller General of India said.

Dr Vikram Sanghi posted an update on eMediNexus

Wednesday, August 3, 2016

August 1-7 is World Breastfeeding Week

World Breastfeeding Week is celebrated every year from 1 to 7 August in more than 170 countries to encourage breastfeeding and improve the health of babies around the world. It commemorates the Innocenti Declaration made by WHO and UNICEF policy-makers in August 1990 to protect, promote and support breastfeeding. The WHO recommends exclusive breastfeeding until a baby is six months old, and continued breastfeeding with the addition of nutritious complementary foods for up to 2 years or beyond. This year's WBW theme is ‘Breastfeeding: A key to Sustainable Development’. The World Breastfeeding Week 2016 theme is about how breastfeeding is a key element in getting us to think about how to value our wellbeing from the start of life, how to respect each other and care for the world we share.

Source -eMediNews 
Photo source - https://www.retailpharmacymagazine.com.au/event/world-breastfeeding-week/

Thursday, June 30, 2016

फ्लोराइड - (Fluoride) - ज्यादा मात्रा में हानिकारक हो सकता है ।

दोस्तों,

मेरे एक मित्र की संस्था, क़ानूनी नीतियों पे काम करती है । 
वो इस समय फ्लोराइड प्रभावित इलाको, जिसपर किसीका ध्यान नहीं गया है या कम ध्यान गया हो इस तरह की इलाको में फ्लोराइड के ऊपर काम करना चाहती है और सरकार के साथ मिलकर उन इलाको में  कुछ काम / मदद करना चाहती है । 
फ्लोराइड यह फ्लोरिन का एक कंपाउंड है, एक रसायन है जो पृथ्वी के गर्भ में पाया जाता है । 
यह फ्लोराइड कई उत्पादों में उपयोग में लय जाता है , जैसे की टूथ पेस्ट 

जैसे की मैंने पहले कहा है की यह पृथ्वी के गर्भ में पाया जाता है, कुछ इलाको के ग्राउंड वाटर में  इसकी मात्रा बहोत ही ज्यादा पायी जाती है, और ऐसे पानी का इस्तेमाल पिने के लिए करने से शरीर में फ्लोराइड की ज्यादा मात्रा हो सकती है,   जिसके कारन कई तरह की बीमारिया पैदा होती है जिसे फ्लोरोसिस  कहते है, इसमें दांतों का पीलापन, हड्डियों में कमजोरी आती है।  
पानी में इसकी तय मात्रा - १ मिली ग्राम / ली. है
WHO की रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक करे FLUORIDE

अगर आपके गाँव में कोई फ्लोराइड से प्रभावित हैं, या आसपास किसी को जानते हैं तो कृपया संपर्क करें | फ्लोराइड प्रभावितों के दांतों में लाल या काले धब्बे से लेकर हड्डियों के कमज़ोर होने के लक्षण देखें जा सकते है | ये ज़्यादातर गाँवों में रहें वालों को ज्यादा प्रभावित करता है जो भू-जल पर अपने पेय-जल के लिए निर्भर रहते है |

अगर आप किसी ऐसे गांव को जानते है तो मुझे निचे दिए कमेंट बॉक्स से संपर्क करे, मैं आपका मुद्दा मेरे दोस्त की संस्था तक पहुंचाऊंगा, हो सकता है की जल्द ही मदद मिल जाये । 

धन्यवाद ! 


आपका 
डॉ. प्रशांत राजनकर   

Wednesday, June 29, 2016

मख्खियां पहुँचाती है बीमारिया !!

दोस्तो,
मॉनसून आया है, थोड़ा सुकून तो लगता है।  

कुछ जगह हल्का फुल्का तो कुछ कुछ जगह काफी बारिश हुई है, इस बारिश के सीजन में हमे सेहत का कुछ ज्यादा ही खयाल रखना पड़ता है।  वो भी खासकर जब हम बाहर खाना खाते है|

थोड़ा सतर्क हो के बाहर की चीजों को खाना, जहां हम खाना या और चीज कहा रहे है, वहां की जगह साफ होनी चाहिए, और वह मख्खियां नहीं होनी चाहिए। इससे हम कुछ सामान्य बीमारियों से बच सकते है।  

इस सिजन कई कारणों से कई बीमारियाँ हो सकती है लेकिन जिसे देखकर भी हम नजर अंदाज करते है वो है मख्खियां।  

मख्खियां एक सामान्य स्त्रोत है जो बक्टेरिया को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाता है।  जो मखिया गन्दे कचरे पे या गंदी जगह पर बैठती है वही वहां के नजदीक खाने पे बैठती है, इसमें जो गन्दे कचरे या गंदी जगह पर जो हानिकारक  कीटाणु, जीवाणु, विषाणु या अन्य हानिकारक जीव वो मखियो के पैरो में चिपकते है और जब वो मख्खियां खाने पे बैठती है तो वही हानिकारक  कीटाणु, जीवाणु, विषाणु या अन्य हानिकारक जीव खाने में आ जाते है। 

नीचे दी गई लिंक पे आप और ज्यादा इंफॉर्मेशन पढ सकते है।  



You Tube

यह हानिकारक  कीटाणु, जीवाणु, विषाणु या अन्य हानिकारक जीव इतने सूक्ष्म होते है की खुली आंखों से देखना नामुमकिन है।  

भेल, पानीपुरी, चाट जैसी और भी कई चीजे है जिसमें अगर ऐसे हानिकारक सूक्ष्म जीव आ जाते है तो हमे डायरिया, पेट की बीमारिया, सर दर्द जैसी सामान्य पर तकलीफदेह बीमारिया  है।  खास कर बच्चों में इम्युनिटी कम होने के कारण उन्हें जल्द ही ऐसी बीमारिया हो जाती है।  

थोड़ी सी सावधानी से और समझदारी से हम इन बीमारियों से बच सकते है।  

धन्यवाद ,

डॉ प्रशांत राजनकर 





Saturday, June 25, 2016

सीसा रहित पेंट का इस्तमाल करे - Use Lead Safe Paint

दोस्तों नमस्कार !!

स्वास्थ ही धन की इस कड़ी मे एक और विषय के बारे में लिख रहा हु।

कुछ महीनो पहले आपने मैग्गी में लेड (सीसा /Lead ) के बारे में बहोत सुना होगा, और आशचर्य भी हुआ होगा.
उसी तरह कई और ऐसे प्रोडक्ट्स है जिसमे भी सीसा का इस्तेमाल होता है।

एक कॉमन प्रोडक्ट है, हमारे घरों में लगने वाले इनेमल पेंट. २००९ के पहले देश की कई नामी कम्पनिया इसका इस्तेमाल अपने प्रोडक्ट्स में करते थे, अब आप सोच रहे होगे की पेंट में सीसा का इस्तेमाल क्यों होता है और वो हानिकारक कैसे हो सकता है?

शीशे का इस्तेमाल 

  • पेंट को ग्लॉसी बनने के लिये
  • पेंट को बैक्टीरिया या फंगस से बचाने के लिए 
  • ज्यादा दिन तक टिकाऊ बनने के लिए 
  • अच्छा स्प्रेड होने के लिए 
कुछ वक़्त पहले अन्य विकसित देशो की तुलना में हमारे देश में पेंट में सीसा की मात्रा का काफी इस्तेमाल होता था । अब मुश्किल ये है की जब हमारा घर रेनोवेशन के लिए आता है तो उस वक़्त आजकल पेंटर पहले पुराना पेंट को निकाल के दूसरा पेंट लगाने की सलाह देते है, और वो पुराने पेंट को घिस कर निकालते है । इस वक़्त अगर पुराने पेंट  में  सीसा की मात्रा काफी होगी तो, वो घिसाई के मिल जाती है और, अगर उस वक़्त हम घर में है तो हमारे शरीर में पहुंच जाती है, ये हमारे लिए और ख़ास कर छोटे बच्चों के लिया बहुत ही हानिकारक है । 
इससे, 

  • अस्थमा 
  • बच्चों के आय क्यों लेवल पे फर्क पड़ता है (२-५ काम हो सकता है )
  • सेंट्रल नर्वस प्रणाली को प्रभावित करता है 
  • स्कूल में / पढाई में ध्यान न लगना 
  • और कई अन्य बीमारिया हो सकती है 
  • अगर आपके बच्चों में इस तरह की कुछ शिकायत है तो अपने बच्चे के खून में सीसा की जाँच कराये।
  • सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (CDC) ने 5 micrograms per deciliter इतनी मात्रा तय की है और इससे ज्यादा मात्रा पायी गयी तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए 
सुनने में थोड़ा अजीब लगता है की पेंट में मिला हुआ सीसा हमारे शारीर में इस तरह से पहुंच के हांनी पहुचाएगा लेकिन कई ऐसी रिसर्च इसका सबूत है । 

WHO ने भी इस विषय को काफी गंभीरता  से लिया है 

इसीलिए जब भी आप अपने  घरो के लिए ख़ास कर बच्चों के रूम के लिए पेंट  ले तो वह Lead Safe Paint / Lead  Free  Paint या फिर जिसमे ९० पीपीएम से कम मात्रा में सीसा का इस्तेमाल हुआ है वो वाले पेंट ले.  पेंट के डब्बो पे नो एडेड लीड  (no added lead ) देखे । 

हमारी संस्था (www.toxicslink.org )  लगातार प्रयास से देश की नामी कम्पनिया अभी सिमित मात्रा में इस्तेमाल कर रहे  है लेकिन कुछ (लगभग २०००) छोटी कम्पनियाँ भी हमारे देश में अभी ९० पीपीएम से कम मात्रा में सीसा का इस्तेमाल  कर रही है । 
Report 2013 

देश में  इस साल mandatory standard  (९० पीपीएम )  बन रहा है इससे 


और कुछ लिंक्स जो इसके बारे में और विस्तार से बताती है 
Economic Loss (I am quoted in this news)


नोट - २००० के पहले देश में पेट्रोल में भी शीसे का इस्तेमाल होता था, लेकिन पर्यावरण में फिर शीसे का बहोत गया और उससे काफी बीमारिया भी हुई थी तो उसको पेट्रोल से निकाल दिया, और अभी हमें सीसा रहीत  पेट्रोल ही मिलता है । 


आपका 
डॉ. प्रशांत राजनकर 














Monday, June 20, 2016

निकामी झालेल्या सी. एफ. एल. व ट्युब लाईट ठरू शकतात हानिकारक

मित्रहो, 


प्रत्येक सी. एफ. एल. आणि  ट्युब लाईट मध्ये प्रकाश उत्पादन करण्यासाठी पार ह्या धातूचा वापर केला जातो. पारा हा फ्लुरोसेंत लाईट मधला महत्वाचा भाग आहे. पारा हा जड धातू (heavy metal) मानला जातो. विश्व स्वस्थ संगठ्नेने  (WHO) सुद्धा पारयाला विषारी धातू म्हणून घोषित केलेले आहे. 

हा धातू सामान्य तापमानास द्रव रुपात असतो तर थोड्या ज्यास्त तापमानाला तो वायूत रुपांतरीत होतो. जो आपल्या श्वासातून शरीरात गेल्यावर खूप हानिकारक ठरू शकतो.  

सी. एफ. एल. किंवा ट्युब लाईट च्या वापराने विजेची बचत होते हे खरे पण जर ज्यास्त पारा असलेले सी. एफ. एल. किंवा ट्युब लाईट वापरले आणि वापरून झालेले बल जर अपघाताने बंद खोलीत फुटले तर त्यात असलेल्या पा-या मुले आपल्याला, खासकरून लहान मुलांना व पर्यावरणाला धोका होण्याची शक्यता जास्त आहे. 

जर लहान मुले ह्या पारयाच्या संपर्कात आली तर पारा त्यांच्या शरीरात जाऊन काही इंद्रियांवर घातक परिणाम करू शकतो, त्याचबरोबर, स्मरणशक्ती कमी होणे, विचार करण्याची क्षमता कमी होणे, बुध्यांक कमी होणे ह्या सारखे दुष्परिणाम उध्भवण्याची शक्यता असते. 

म्हणूनच सी. एफ. एल. किंवा ट्युब लाईट ह्यांचा वापर करणे जरी योग्य असले तरी उपयोगानंतर, निकामी झालेल्या सी. एफ. एल. व ट्युब लाईट चे प्रबंधन करणे महत्वाचे झाले आहे. अजूनही भारतात ह्यासाठी काही तंत्रज्ञान नाही. काही सरकारी संस्था निकामी झालेल्या सी. एफ. एल. व ट्युब लाईट चे प्रबंधन कसे करायचे ह्यासाठी काम करीत आहे. *



*
*आपला
*डॉं. प्रशांत राजनकर, *

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