"बोतल वाली जिंदगी"
न दिया अगर तवज्जो पर्यावरण को,
तो जिंदगी, बोतलों में ही निकल जाएगी,
कभी शुद्ध हवा की तो कभी शुद्ध पानी की,
बोतलें हर घर नजर आएगी।
यह कभी खुली थी आसमा में,
यह कभी भरा था धरती की गोद में।
शुद्ध, शुद्ध, शुद्ध
ना कमी थी, ना चिंन्ता थी,
अब तो दोनों ही है।
और दोनों भी शुद्ध नहीं है।
नहीं बचा कर रख पाए,
हम पर्यावरण का अभिमान।
बस अपनी जरूरतों का ही रखा सारा ध्यान।
अब समझ आया है, चुकाना है ऐहसान,
आओ मिलकर करे प्रयास,
बचाये पर्यावरण और प्राण।
- डॉ प्रशांत राजनकर
Thank You and Regards-
Dr. Prashant Rajankar, MSc. Ph.D.
Mob: +91-9650745900 I Skype – pnrajankar
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